पानीपत (वंदे हरियाणा) – भारतीय राजनीति का इतिहास सत्ता के लिए स्वार्थ और अवसरवादिता से भरा हुआ है। राजनीतिक दांव-पेंच और पद की चाहत ने कई नेताओं को अपनी राह बदलने पर मजबूर किया है। ऐसे में पानीपत की राजनीति के चर्चित चेहरे विजय जैन पर भी कई आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह राजनीति में अपने निजी स्वार्थों के लिए बार-बार पार्टियां बदलते आ रहे हैं। कभी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कट्टर समर्थक और उसे अपनी “मां” कहने वाले विजय जैन अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, और इसे जनता ने एक अवसरवादी कदम के रूप में देखा है।
विजय जैन का राजनीतिक सफर:
विजय जैन का राजनीति में प्रवेश एक समाजसेवी के रूप में हुआ था। समाजसेवा के जरिए उन्होंने जनता के बीच एक छवि बनाई कि वह एक निस्वार्थ सेवक हैं। उनके समाजसेवा के कार्यों को देखकर लोगों ने उन्हें काफी सम्मान दिया, लेकिन जब से वह राजनीति के मैदान में आए, उनकी छवि पर सवाल उठने लगे। विजय जैन ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत भाजपा से की थी। वह पार्टी के कट्टर समर्थक थे और अक्सर पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों की प्रशंसा करते थे।
समाजसेवा या राजनीति की भूख?
विजय जैन की राजनीति में दिलचस्पी और उनकी पार्टी बदलने की प्रवृत्ति ने उनके समाजसेवा के कार्यों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता का मानना है कि सच्चा समाजसेवी कभी अपने कार्यों का प्रचार नहीं करता, जबकि विजय जैन का समाजसेवा में हाथ होने का दावा महज एक राजनीतिक स्टंट है। उनका असली उद्देश्य समाज की सेवा नहीं, बल्कि विधायक बनकर सत्ता में आना है।
भाजपा से कांग्रेस की ओर रुख:
बार-बार पार्टियां बदलने का प्रभाव:
राजनीति में पार्टी बदलना कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब कोई नेता बार-बार पार्टियां बदलता है, तो जनता के बीच उसकी छवि धूमिल हो जाती है। विजय जैन की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। भाजपा से कांग्रेस और फिर कांग्रेस से स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में नॉमिनेशन भरना, उनकी राजनीतिक अस्थिरता को दर्शाता है। जनता अब यह मानने लगी है कि विजय जैन के पास कोई स्थायी विचारधारा नहीं है, और वह केवल सत्ता प्राप्ति के लिए इस तरह के कदम उठा रहे हैं।